ऐसा एक दोस्त
है मेरा,
शर्माता हुआ
है जिसका चेहरा,
कभी तो वो
मुझसे दूर है
भगता,
कभी भीड़ में
भी बंद कर देता
मेरा दायरा,
ऐसा एक दोस्त
है मेरा .....
कभी पास बैठा
कर बाप जैसे
समझाता,
कभी माँ की
तरह सर पे
हाथ फिराता,
कभी बहन की
तरह गुस्से से
चिल्लाता,
तो कभी भूखे
भेड़िये की तरह
है कटता
ऐसा एक दोस्त
है मेरा .....
कभी बिन कहे
ही आ जाता,
तो कभी रूठ
के पास ना
आता,
कभी लता अपने
साथ मेरी कहानियों
का पिटारा,
तो कभी खाली
हाथ ही आ
जाता,
ऐसा एक दोस्त
है मेरा .....
मैं ना जानू कहाँ
है वो जाता,
पर हमेशा लौट के मेरे
पास ही आता,
हर बार सुनाता
है मुझे मेरी ही
कहानियाँ,
आँखों में आंसू
ला कर कुछ
सबक सिखा जाता,
ऐसा एक दोस्त
है मेरा .....
वो ना तो
है कोई इंसान,
न रूह, न
जानवर,
वो है घनघोर
अंधेरे में एक
धुआँ ...
जो रेहता
मेरे ही अन्दर,
उसकी ना तो
है कोई जवानी,
ना है बचपन,
वो है मेरा
दोस्त 'अकेलापन'!!!
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